हम कि ख़ामोश हुए अहल-ए-बयाँ देखते हैं राज़ अंदाज़-ए-तकल्लुम से अयाँ देखते हैं जान-लेवा है फ़रेब-ए-रह-ए-गुलज़ार-तलब नश्तर-ए-शौक़ क़रीब-ए-रग-ए-जाँ देखते हैं है उसी घर में कहीं गौहर-ए-उम्मीद निहाँ सू-ए-वीराना-ए-दिल बहर-ए-अमाँ देखते हैं कैसे बनता है लहू सुर्ख़ी-ए-अफ़साना-ए-दिल कैसे बनता है क़लम नोक-ए-सिनाँ देखते हैं आतिश-ए-शौक़ को रखते हैं ब-हर-तौर जवाँ ख़ाक-ए-गुलशन में ज़र-ए-गुल के निशाँ देखते हैं ख़शमगीं आज वो यूँ हैं कि नहीं ताब-ए-सुख़न 'अर्श' हम आज तिरा ज़ोर-ए-बयाँ देखते हैं