हम को ख़याल-ए-ख़िदमत-ए-अह्ल-ए-जहाँ तो है ताक़त नहीं है पाँव में मुँह में ज़बाँ तो है मुझ से कोई त'अल्लुक़-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ तो है गर मेहरबाँ नहीं है वो ना-मेहरबाँ तो है दुश्मन अगर है सारा ज़माना तो ख़ौफ़ क्या मेरा भी इस जहाँ में कोई पासबाँ तो है जाने पे मेरे क़ैद नहीं उन की बज़्म में लेकिन मिज़ाज-ए-नाज़ पे बार-ए-गराँ तो है अपनों से ग़ैर अच्छा है जो ग़म-गुसार है वो मेरा चारा-साज़ नहीं मेहरबाँ तो है सीने में क्यों जलन सी ये रहती है रात-दिन माना कि दिल में आग नहीं है धुआँ तो है पीने दो मुझ को आँखों से ही मय-कदे में आज साग़र नहीं है मय नहीं पीर-ए-मुग़ाँ तो है अपने करम से वो जिसे चाहे नवाज़ दे जो बे-अमल हयात है वो राएगाँ तो है ये नक़्श-ए-पा है राह-रव-ए-राह-ए-अर्श का अब राह-रौ नहीं है मगर कहकशाँ तो है मंज़िल कोई न सम्त कोई होगा हश्र क्या ये कश्ती-ए-हयात हमारी रवाँ तो है जब संग-दिल के वास्ते मरना है डूब कर दरिया अगर नहीं है 'मुसव्विर' कुआँ तो है