हम को किया है वक़्त ने मजबूर क्या करें इस वास्ते हैं आप से हम दूर क्या करें ख़ुद को इस अंजुमन में वो मशहूर क्या करें दुनिया है कम-नसीबों की बे-नूर क्या करें ख़ून-ए-शुऊ'र ख़ून-ए-वफ़ा ख़ून-ए-आरज़ू जलने लगे हैं सूरत-ए-नासूर क्या करें दौलत का सिक्का चलता है सारे ही शहर में नादार क्या करें यहाँ मजबूर क्या करें पहले ही बे-हिजाब नज़र आ रहे हैं वो उन को दिल-ओ-निगाह में मस्तूर क्या करें ख़ामोश इस ख़याल से बैठे हैं बज़्म में रूदाद-ए-ग़म से आप को रंजूर क्या करें पूरी हो किस तरह दिल-ए-मुज़्तर की आरज़ू बदला है हुस्न-ओ-इश्क़ का दस्तूर क्या करें राहत की बात किस तरह आए ज़बान पर बढ़ने लगे हैं क़ल्ब के नासूर क्या करें बार-ए-ग़म-ए-हयात उठा तो लिया मगर 'क़ैसर' हैं अपने वक़्त से मजबूर क्या करें