हम को क्या बात कर नहीं आती हाँ अगर और मगर नहीं आती उस के मिलने की क्या करूँ सूरत कोई सूरत नज़र नहीं आती आते जाते हैं रात-दिन दिन-रात शब-ए-ग़म की सहर नहीं आती आबरू भी है आब मोती के जा के बार-ए-दिगर नहीं आती बढ़ के बोलो कभी न बोल बड़ा बद-घड़ी बोल कर नहीं आती कैसी पाबंद वक़्त की है अजल वक़्त से पेशतर नहीं आती है नज़र दूसरों के ऐबों पर खोट अपनी नज़र नहीं आती बे-ख़बर अपने हाल से हूँ 'अता' कोई उस की ख़बर नहीं आती