हम ने चाहा उसे उसी के बग़ैर काट दी उम्र ज़िंदगी के बग़ैर ऐसे भी कुछ चराग़ होते हैं जलते रहते हैं रौशनी के बग़ैर हो गए पार हम तसव्वुर में नाव चलती रही नदी के बग़ैर ज़ब्त क्या है ये पोछिए हम से मुस्कुराए हैं हम ख़ुशी के बग़ैर घुट के रह जाएगा अकेले में आदमी क्या हैं आदमी के बग़ैर