हम ने जब चाहा कोई आग बुझाने आए आए तो लोग मगर दिल को जलाने आए कुछ असर होता नहीं बज़्म-ए-तरब का दिल पर दर्द का गीत कोई आज सुनाने आए रास जब आ न सका शहर-ए-ख़िरद का माहौल वुसअ'त-ए-दश्त-ओ-बयाबाँ में दिवाने आए भागी जाती है ये दुनिया नई रौनक़ की तरफ़ शहर है उजड़ा हुआ कौन बसाने आए आज तक जिन को नहीं राह-ए-सदाक़त की ख़बर हक़्क़-ओ-बातिल का वही फ़र्क़ बताने आए क्यूँ किसी ग़ैर पे इल्ज़ाम मैं रखता 'अंजुम' मेरे अपने वो सभी थे जो रुलाने आए