हम ने जब दर्द भरी अपनी कहानी लिक्खी लोग कहने लगे रूदाद पुरानी लिक्खी मैं ने इक पेड़ समुंदर के जज़ीरे से लिया और चट्टान पे पानी की रवानी लिक्खी अजनबी तर्ज़ लिए मैं नहीं आया हूँ यहाँ दास्ताँ अपनी तुम्हारी ही ज़बानी लिक्खी चश्म-ए-महबूब को नर्गिस का लक़ब तू ने दिया मैं ने शेरों में मगर ''रात की रानी'' लिक्खी कौन सा वक़्त अमल का है जवानी के सिवा? नींद कब आती है? पूछा तो जवानी लिक्खी रात जब आई तो दिन भर का फ़साना लिक्खा जब चली बाद-ए-सहर शाम सुहानी लिक्खी बाग़-ए-फ़िरदौस की लोरी मैं सुनाता कैसे? मिरी क़िस्मत में थी आशुफ़्ता-बयानी लिक्खी ख़ुश्क था मेरा क़लम कुछ नहीं लिख पाता था लिखने बैठा तो बड़ी राम कहानी लिक्खी तुम ने जब हर्फ़ को ख़्वाबों का सफ़र कह डाला मैं ने भी लफ़्ज़ की ताबीर-ए-मआनी लिक्खी नर्म-ओ-नाज़ुक था 'करामत' तिरे शेरों का मिज़ाज वक़्त पड़ने पे मगर शोला-बयानी लिक्खी
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