हम ने कुछ पँख जो दालान में रख छोड़े हैं पंछी आ जाएँगे इस ध्यान में रख छोड़े हैं सर-बुलंदी हो कि ऐ रहगुज़र-ए-दिल हम ने सारे झगड़े ही तिरी शान में रख छोड़े हैं ऐसा आशोब-ए-तवाज़ुन था कि पत्थर सारे खेंच कर पल्ला-ए-मीज़ान में रख छोड़े हैं सोचता हूँ कि वो ईमान ही ले आए कभी रख़्ने कुछ ऐसे भी ईमान में रख छोड़े हैं रख लिए रौज़न-ए-ज़िंदाँ पे परिंदे सारे जो न वाँ रखने थे दीवान में रख छोड़े हैं ऐसे कुछ दिन भी थे जो हम से गुज़ारे न गए वापसी के किसी सामान में रख छोड़े हैं आज का दिन है किसी बाद-ए-हिना चलने का दिन आज के लम्हे इसी शान में रख छोड़े हैं