आइना ऐसा कभी देखा न था मेरे चेहरे में मिरा चेहरा न था नींद लिपटी रह गई इस ख़्वाब से दर-हक़ीक़त ख़्वाब जो अपना न था इक पड़ोसी दूसरे से ना-बलद बे-मुरव्वत शहर तो इतना न था रौशनी का ये भी है इक तजरबा मैं जहाँ भटका था अँधियारा न था हाथ जो खोला तो बच्चा रो पड़ा बंद मुट्ठी में कोई सिक्का न था