हम पे जौर-ओ-सितम के क्या मअनी तर्क-ए-रहम-ओ-करम के क्या मअनी ऐश-ओ-इशरत से ग़म के क्या मअनी फ़रबही है दिरम के क्या मअनी रात फ़ुर्क़त की किस को कहते हैं रोज़-ए-हिज्र-ए-सनम के क्या मअनी गर नहीं उस का साग़र-ए-मय-नाब कहिए फिर जाम-ए-जम के क्या मअनी पूजना बुत का है ये क्या मज़मून और तवाफ़-ए-हरम के क्या मअनी कूचा-ए-गुल-रुख़ाँ को कहते हैं और बाग़-ए-इरम के क्या मअनी यूँही वादा करो यक़ीं हो जाए क्यूँ क़सम लूँ क़सम के क्या मअनी माजरा चश्म-ए-नम का तू समझे लेकिन अब्र-ओ-करम के क्या मअनी बोसे व'अदे से कम नहीं मंज़ूर दम न दो हम को दम के क्या मअनी एक दो तीन चार पाँच छे सात यूँही गिन लेंगे कम के क्या मअनी ऐ 'सख़ी' यार ने दिखाई कमर शब जो पूछा अदम के क्या मअनी