हम राह-रव-ए-मंज़िल दुश्वार रहे हैं

हम राह-रव-ए-मंज़िल दुश्वार रहे हैं
हर तरह मुसीबत में गिरफ़्तार रहे हैं

गह क़ैद में और गाह सर-ए-दार रहे हैं
ऐ प्यारे वतन तेरे परस्तार रहे हैं

हर चंद वफ़ाओं पे लगाए गए इल्ज़ाम
ऐ हिन्द मगर तेरे वफ़ादार रहे हैं

ये बात अलग साक़ी नवाज़े न नवाज़े
हम मय-कदा-ए-इश्क़ के मय-ख़्वार रहे हैं

जो नंग-ए-चमन कहते हैं तारीख़ तो देखें
हम रूह-ए-चमन ज़ीनत-ए-गुलज़ार रहे हैं

ख़ुद अहल-ए-ख़िरद छोड़ गए राह-ए-वफ़ा को
हम अहल-ए-जुनूँ साहिब-ए-किरदार रहे हैं

दा'वा-ए-मोहब्बत है जिन्हें आज चमन से
माज़ी में वही देश के ग़द्दार रहे हैं

जब जब भी कड़ा वक़्त पड़ा अपने वतन पर
जाँ अपनी फ़िदा करने को तय्यार रहे हैं

दुनिया को सबक़ हम ने अहिंसा का पढ़ाया
दुश्मन के लिए आहनी दीवार रहे हैं

'बेबाक' मिटा सकता नहीं हम को ज़माना
हम हक़ के लिए बर-सर-ए-पैकार रहे हैं


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