जब वो मुझ से बोले है लफ़्ज़ों को क्यों तोले है उस का ख़्वाबीदा लहजा नींद आँखों में घोले है यादों की नय्या में दिल रात को तन्हा डोले है रातों का सन्नाटा भी राज़ हज़ारों खोले है इस दुनिया में कौन है जो अपना ज़ेहन टटोले है अज़्म जवाँ हो तो इंसाँ कोह के पत्थर ढोले है पैसा है पानी जैसा क़ातिल दामन धोले है ज़र्फ़ तो देखो दामन का कितने अश्क समो ले है मन पंछी घबरा कर अब उड़ने को पर तोले है महफ़िल से हट कर 'बेबाक' तन्हाई में रो ले है