हम सलामत हैं तो अपना घर भी है ज़र भी है ज़र-गर भी है ज़ेवर भी है अब्र-ए-नैसाँ आए और बरसे तो फिर गुल भी है गुलशन भी है गौहर भी है दीद की क़ुव्वत हो जब तक आँख में महर भी है मह भी है अख़्तर भी है बख़्त जब तक बरसर-ए-इक़बाल हो तख़्त भी है ताज भी है सर भी है साक़ी-ए-महवश अगर हो मेहरबाँ मय भी है मीना भी है साग़र भी है मौत की आँखों से जब तक दूर हैं चिल्क़द-ए-आहन भी है मिग़्फ़र भी है वक़्त पर क़ाएम रहे हिम्मत अगर लट भी है पत्थर भी है ख़ंजर भी है अक़्ल जब तक पासबाँ है जान की ख़ौफ़ भी है तर्स भी है डर भी है क़ुव्वत-ए-पर्वाज़ कुछ भी है तो फिर पर भी है बाज़ू भी है शहपर भी है शौक़ अगर है मंज़िल-ए-मक़्सूद का रह भी है रहरव भी है रहबर भी है