हम से जो अहद था वो अहद-शिकन भूल गया अपने उश्शाक़ को वो ग़ुंचा-दहन भूल गया क़ैस का जलवा-ए-लैला जो हुआ होश-रुबा वो सरासीमा हुआ नज्द का बन भूल गया क्या करिश्मा ये तिरी चश्म-ए-सुख़न-गो ने किया किस की जानिब था मिरा रू-ए-सुख़न भूल गया ख़ार ख़ार-ए-ग़म-ए-उल्फ़त ने किया राह ग़लत तेरा मदहोश-ए-नज़र राह-ए-चमन भूल गया निगह-ए-शौक़ ने दीवाना बनाया मुझ को कुछ ख़बर अपनी नहीं है हमा-तन भूल गया हो गया होश-रुबा हुस्न-ए-फ़रेब-ए-आलम नल जो बाज़ी में लगा इश्क़-ए-दमन भूल गया शौक़-ओ-रम तेरे जो देखे हैं ग़ज़ाल-ए-रअना चौकड़ी अपनी बयाबाँ में हिरन भूल गया सैर-ए-गुलज़ार में है महव-ए-तमाशा वो गुल बुलबुल-ए-शेफ़्ता को ग़ुंचा-दहन भूल गया सब्ज़ा-ए-ख़त ने तिरे राह में घेरा मुझ को ग़र्क़ मैं हो न सका चाह-ए-ज़क़न भूल गया महव होता ही नहीं इस का कभी दिल से ख़याल याद करता ही नहीं मुश्फ़िक़-ए-मन भूल गया शाहिद-ए-मस्त ने सरमस्त किया है 'साक़ी' हम वो मदहोश हुए रंग-ए-सुख़न भूल गया