जले चराग़ भला कैसे ता-सहर कोई हवा के पास नहीं दूसरा हुनर कोई उभरती डूबती गुज़रे हुए विसाल की नाव बदन के बहर में पड़ता हुआ भँवर कोई ये दिल-जज़ीरा किसी धुँद के ग़िलाफ़ में है सो अब जहाज़ नहीं आएगा इधर कोई उदास चाँद ने दरिया के दर पे दस्तक दी ख़ुश-आमदीद को बढ़ने लगा भँवर कोई किसी सवाल का चेहरा किसी ख़याल का फूल नवाह-ए-जाँ में कहाँ हर्फ़-ए-मो'तबर कोई