हम से मत पूछो कि इक वो चीज़ क्या दोनों में है जो मिलाता है हमें वो फ़ासला दोनों में है उस के मिलने की ख़ुशी हो या बिछड़ जाने का ग़म होश रहता ही नहीं ऐसा नशा दोनों में है उस की आँखें कान हैं और मेरी आँखें भी हैं होंट अपनी अपनी कहने सुनने की अदा दोनों में है गीत के साँचे में ढालूँ या ग़ज़ल के रूप में पर तिरे ही नाम का इक क़ाफ़िया दोनों में है यूँ किसी आवाज़ का चेहरा नहीं होता मगर जिस में आवाज़ें दिखें वो आइना दोनों में है इस को आस्तिकता कहो चाहे नास्तिकता 'कुँवर' दोनों ख़त उस के ही हैं उस का पता दोनों में है