हम तिरे बंदे हमारा तू ख़ुदा-वंद-ए-करीम दस्त-ए-क़ुदरत में तिरे दोनों-जहाँ की तंज़ीम बिन तिरे हुक्म की पत्ता नहीं हिलता हरगिज़ इज़्न से तेरे ही चलती है ज़माने में नसीम तुझ से पोशीदा नहीं राज़ किसी का कोई कि तिरी ज़ात है असरार-ए-निहानी की अलीम कर दिए 'बर्क़'-ए-तजल्ली ने मगर हौसले पस्त तुम को वल्लाह बड़ी दूर की सूझी थी कलीम