दिल जो उम्मीद-वार होता है तीर-ए-ग़म का शिकार होता है जब तिरा इंतिज़ार होता है दिल मिरा बे-क़रार होता है ये ही फ़स्ल-ए-जुनूँ की है तम्हीद पैरहन तार तार होता है आँख मिलते ही उस सितमगर से तीर सीने के पार होता है मुस्कुराहट लबों पे है उन के दिल मिरा अश्क-बार होता है उस का करते हैं ए'तिबार कि जो क़ाबिल-ए-ए'तिबार होता है उठ के पहलू से जा रहा है कोई क्या ये पर्वरदिगार होता है क्या बताऊँ तिरी जुदाई में जो मिरा हाल-ए-ज़ार होता है शाम-ए-ग़म इंतिज़ार में उन के मौत का इंतिज़ार होता है उन के जाने का नाम सुन कर 'राज़' कुछ अजब हाल-ए-ज़ार होता है