हम उजाले तिरे गलियों के जिधर जाते हैं सूने सूने से दर-ओ-बाम सँवर जाते हैं लाख हँसता है खड़ा राहों में आँखों का हुजूम तेरे वहशी हैं कि चुप-चाप गुज़र जाते हैं कोई किस दिल से सजाए हमें आँखों में भला हम वो सपने हैं जो लम्हों में बिखर जाते हैं इक नए ख़्वाब की हसरत में न पूछ ऐ हमदम आँखों आँखों में शब-ओ-रोज़ गुज़र जाते हैं हम मुसाफ़िर हैं रह-ए-ज़ीस्त में चलते चलते कोई भी हम को पुकारे तो ठहर जाते हैं रौशनी नाम की हर शय से मोहब्बत थी कभी अब तो हर सुब्ह-ए-ज़िया-बार से डर जाते हैं हम कि सहरा-ए-मोहब्बत में दम-ए-ख़ामोशी कितनी आवाज़ों के साए से गुज़र जाते हैं हम हिरासाँ तो नहीं गर्दिश-ए-दौराँ से मगर आप की शोख़ी-ए-रफ़्तार से डर जाते हैं महवशों को न दिखा आइना-ए-ग़म 'नाज़िम' ये वो चेहरे हैं कि पल भर में उतर जाते हैं