हम उन के ग़म में तड़प रहे हैं जो ग़ैर से दिल लगा चुके हैं हमारे दिल में है याद उन की जो हम को दिल से भुला चुके हैं बला-ए-महशर भी सहल उन को अज़ाब-ए-दोज़ख़ भी उन को आसाँ जो तेरी उल्फ़त में अपने दिल पर ग़म-ए-जुदाई उठा चुके हैं अदू से जा कर करो ये बातें वहीं गुज़ारो तुम अपनी रातें तुम्हारी बातों में आ चुके हम तुम्हें बहुत आज़मा चुके हैं अगर न आएँ नज़र न आएँ नहीं है कुछ भी ख़याल इस का कहाँ वो जाएँगे मुँह छुपा कर हमारे दिल में जब आ चुके हैं ये क्या क़यामत है या इलाही कि उन की आमद का हाल सुन कर शकेब-ओ-सब्र-ओ-क़रार होश-ओ-हवास पहले ही जा चुके हैं ख़याल कुछ भी नहीं है तुझ को बुत-ए-परीवश हमारा हम तो तिरी मोहब्बत में नक़्द-ए-जान-ओ-दिल-ओ-जिगर भी लुटा चुके हैं बुतों को देना न भूल कर दिल न उन पे होना ज़रा भी माइल नहीं है जुज़ रंज उन से हासिल तुझे ये 'नादिर' जता चुके हैं