हम उन को हाल-ए-दिल अपना सुनाए जाते हैं वो बैठे सुनते हैं और मुस्कुराए जाते हैं वो बाद-ए-क़त्ल भी ख़ंजर लगाए जाते हैं शहीद-ए-नाज़ की शौकत बढ़ाए जाते हैं ख़मोश महफ़िल-ए-आदा में दूर बैठे हैं ग़ज़ब है तो भी वो आँखों में खाए जाते हैं ये इंफ़िआल है किस किस जफ़ा-गरी के एवज़ कि बात बात में वो मुँह छुपाए जाते हैं समझ है गया मैं कहूँगा न कुछ ख़ुदा की क़सम शराब आप मुझे क्यूँ पिलाए जाते हैं ये बज़्म-ए-यार में है क़द्र-ओ-मंज़िलत 'रौनक़' कि आए कोई वहाँ हम उठाए जाते हैं