हम उस की बस्ती में हैं पाँचों उँगलियाँ घी में हैं गली से वो गुज़रा इक दिन साल से हम खिड़की में हैं उस से शादी करना थी हम जिस की शादी में हैं फिर फ़ुर्सत से उस की बात आज ज़रा जल्दी में हैं उस के इश्क़ से पता लगा हम कितने पानी में हैं कम ये कहाँ कि हम उस के अपनों की गिनती में हैं अपनी मौत मरेंगे हम लोग ग़लत-फ़हमी में हैं उस से मिल कर आए लोग जाने किस मस्ती में हैं कर जो जी चाहे 'हर्षित' हम तेरी मुट्ठी में हैं