हम वो नालाँ हैं बोली-ठोली में बुलबुलों को जो लें ठिठोली में जामा-ज़ेबों से उस को निस्बत क्या लाख टुकड़े हैं गुल की चोली में रंज-ए-ग़म खाने को ख़ुदा ने दिया क्या नहीं मुझ गदा की झोली में अल्फ़-लैला सुने वो गुल तो सुनाएँ बुलबुलें इक हज़ार बोली में ख़ून-ए-नाहक़ हमारा उछलेगा रंग लाया जो शोख़ होली में चश्म-ए-इबरत से देख पर्दा-नशीं शक्ल ताबूत की है डोली में सब्ज़ा-ए-ख़त हो क्यूँ न जौहर-ए-ख़ाल ज़हर तिरयाक की है गोली में बोसा उस सर्व-ए-क़द से हम आज़ाद माँग लेते हैं बोली-ठोली में 'शाद' रो रो दिया है शबनम ने जब गुलों ने लिया ठिठोली में