हम ये चाहें हमें इंकार की जुरअत हो जाए लब तक आए तो वही हर्फ़-ए-नदामत हो जाए मेरी सोचें मिरा एहसास मिरी ही आवाज़ मेरे शे'रों से मगर आप की शोहरत हो जाए ख़ाक हो कर वो हवाओं में बिखरना चाहे जब किसी को दर-ओ-दीवार से वहशत हो जाए ऐसी दुनिया में बड़ी बात है ज़िंदा रहना यूँ तो वीराने में रहना भी इबादत हो जाए ज़िंदगी हुस्न है और हुस्न कशिश रखता है वर्ना हर शख़्स को जाँ देने की फ़ुर्सत हो जाए इख़्तिलाफ़ात भी हों सुल्ह भी हो जाए अगर रंजिशों में हमें एहसास-ए-मुरव्वत हो जाए