हम ने देखा है बहुत फ़ित्ना-ओ-शर का मंज़र दस्त-ए-क़ातिल में उछलते हुए सर का मंज़र हर नए मोड़ पे देखोगे ब-चश्म-ए-हैरत वक़्त के राह-नुमाओं के हुनर का मंज़र आज तक्बीरें भी हैं बंद अज़ानें भी ख़मोश कितना दिल-दोज़ है अल्लाह के घर का मंज़र बाद मुद्दत के मुलाक़ात हुई जब उन से क़ाबिल-ए-दीद रहा दीदा-ए-शर का मंज़र वो भी थे साथ मगर 'शाद' के रूठे रूठे कितना पुर-लुत्फ़ था उस पहले-पहल का मंज़र