हम ने ख़ुद को ग़म-ए-दुनिया से यूँ आज़ाद किया घर को वीरान किया दश्त को आबाद किया जितने नामी हैं सभी इश्क़ के पाले हुए हैं अपने जैसे ही थे उस ने जिन्हें फ़रहाद किया मैं तो दिन रात तिरी याद में गुम रहता हूँ दोस्ता क्या कभी तू ने भी मुझे याद किया पूछता भी न था कल तक कोई भी वीरानों को हिज्र-ज़ादों ने मियाँ दश्त को आबाद किया जो तुम्हें याद भी रख कर नहीं राज़ी 'दाएम' तुम ने क्यों उस के लिए ख़ुद को यूँ बर्बाद किया