हम से लोगों का जहाँ भर में ठिकाना क्या है तुम तो सब जानते हो तुम को बताना क्या है जो दिया देख के बीनाई से महरूम हुआ ऐसे कम-ज़र्फ़ को सूरज का दिखाना क्या है तेरी क़िस्मत जो रवाँ ज़िंदगी हासिल है तुझे तू नहीं जानता धक्के से चलाना क्या है होती दूरी तो तिरे ग़म को मनाते हम भी कौन सा हिज्र तिरा ख़्वाब में आना क्या है मैं जो अंदाज़े लगाने में लगा हूँ कब से क्या कोई मुझ को बताएगा ज़माना क्या है दश्त में रेत थी या इश्क़ की दौलत ‘साहिब’ घर से निकले तो समझ आई कमाना क्या है