हूँ वो मोमिन जिसे ईमाँ से सरोकार नहीं वो बरहमन हूँ जिसे हाजत-ए-ज़ुन्नार नहीं गंग वो कान जो वक़्फ़-ए-सुख़न-ए-यार नहीं कोर वो आँख जिसे हसरत-ए-दीदार नहीं कुफ़्र से काम न ईमान से मतलब है हमें दोनों आलम से ब-जुज़ तेरे सरोकार नहीं क्या ख़बर-दार करेगा तू हमें ओ ज़ाहिद आप तू अपनी हक़ीक़त से ख़बर-दार नहीं कब तिरे जल्वा-ए-दीदार ने हैरान किया कौन सा दिन है कि हम नक़्श-ब-दीवार नहीं सरफ़रोशी सिफ़त-ए-कोहकन- आख़िर में है इश्क़ पहले तो बहुत सहल है दुश्वार नहीं दहन-ए-गोर से आती है सदा मय्यत को आज हमदम नहीं तेरा कोई ग़म-ख़्वार नहीं देख कर उस को ये हों महव ब-रंग-ए-तस्वीर है ज़बाँ मुँह में मगर ताक़त-ए-गुफ़्तार नहीं चश्म-ए-दिल खोल अगर है तलब-ए-दीद 'अकबर' नज़र आएगा इन आँखों से वो दीदार नहीं