हुस्न का तालिब अगर है इश्क़ के आज़ार खींच सदमा-ए-हिज्र-ए-मसीहा ऐ दिल-ए-बीमार खींच जाँ-निसारों पर न ज़ालिम हर घड़ी तलवार खींच ख़ून से अपने वफ़ादारों के हाथ ऐ यार खींच रुख़ पर आँचल का न पर्दा ऐ परी-रुख़्सार खींच दीदा-ए-उश्शाक़ पर ऐ गुल न यूँ दीवार खींच मर्द-ए-मैदान-ए-मोहब्बत है तो ऐ रुस्तम निकल कुछ सकत हो तो कमान-ए-अबरू-ए-ख़मदार खींच आशिक़-ए-रू-ए-बुताँ को निगहत-ए-गुल से ग़रज़ हो सके तो ऐ सबा इत्र-ए-गुल-ए-रुख़्सार खींच है जो हर सूरत में मंज़ूर उस का नज़्ज़ारा तुझे ग़ाफ़िल आँखों से तू अपने पर्दा-ए-पिंदार खींच हश्र को अर्सा है क्या इस वा'दे को भी देख लें ख़ैर थोड़ी और ईज़ा ऐ दिल-ए-बीमार खींच देर से हाज़िर हैं क़ातिल मा'रका में कुश्तनी पेश-ओ-पस किस बात का है म्यान से तलवार खींच साथ ग़ैरों के न जा सैर-ए-चमन को ऐ हसीन मुझ को काँटों पर न तू ऐ ग़ैरत-ए-गुल-ज़ार खींच हो गया क्या साया-ए-बाल-ए-हुमा साया तिरा इस क़दर दूर आप को मुझ से न ऐ दीवार खींच सब पे यकसाँ चश्म-ए-रहमत तेरी साक़ी चाहिए इस तरफ़ भी तो निगाह-ए-नाज़ की तलवार खींच सूरत-ए-तस्वीर हैराँ हो गया है आप वो क्या कहूँ मानी से मैं तस्वीर-ए-रू-ए-यार खींच ऐ मिरी तक़दीर अब ले चल मदीने की तरफ़ जज़्बा-ए-दिल जानिब-ए-बतहा मुझे इक बार खींच हूरें ले जाएँगी पैराहन बसाने के लिए इत्र ख़ाक-ए-पाक-ए-तैबा का तो ऐ अत्तार खींच ऐ ज़ुलेख़ा है ये आदाब-ए-मोहब्बत से ब-सद शहर-ए-कनआन से न यूसुफ़ को सू-ए-बाज़ार खींच हम से दीवानों की है जागीर में तैबा का दश्त ऐ जुनूँ मजनूँ ही को तू जानिब-ए-कोहसार खींच है जवार-ए-हज़रत-ए-महबूब-ए-हक़ 'अकबर' की जा जानिब-ए-जन्नत न ऐ रिज़वान इसे ज़िन्हार खींच