हुरमत-ए-इश्क़ तुझे दाग़ लगाने का नहीं बात बनती न बने बात से जाने का नहीं या-ख़ुदा ख़ैर कि हम दोनों अना वाले हैं वो बुलाने का नहीं और मैं जाने का नहीं वहशती हूँ सो गरेबान को आ सकता हूँ मुझ से डरने का मगर मुझ को डराने का नहीं बूढे आ'साब कहाँ सहते हैं औलाद का दुख मेरी तकलीफ़ मिरी माँ को बताने का नहीं हम तो इक ऐसी ज़मीं पर हैं जहाँ लाशें हैं तुम ने जो नक़्शा दिया था वो ख़ज़ाने का नहीं मैं अज़ल ता-ब-अबद और अबद ता-दाइम इस का मतलब मैं किसी एक ज़माने का नहीं दर्स ये ख़ास हमें आल-ए-पयम्बर से मिला सर कटाने का मगर सर को झुकाने का नहीं मैं अबू-बक्र-ओ-अली वाला हूँ 'यूनुस-तहसीन' मुझ को मुल्ला के मसालिक से मिलाने का नहीं