हुस्न अक्स-ए-जमाल-ए-फ़ितरत है इश्क़ सर-चश्मा-ए-मोहब्बत है खुल गया ग़ुंचा-ए-शबाब कहीं निकहतों में नहाई ख़ल्वत है मुद्दआ' है लरज़ते होंटों पर इम्तिहान-ए-वक़ार-ए-ग़ुर्बत है अपने घर में भी हम नहीं महफ़ूज़ कोई तोहमत नहीं हक़ीक़त है देख कर हम को बरसर-ए-पैकार गर्दिश-ए-वक़्त महव-ए-हैरत है मेरी ग़ज़लों पे कीजिए तन्क़ीद मुझ को इस की बहुत ज़रूरत है हम हैं उर्दू ज़बाँ के ख़ुद क़ातिल ऐ 'तरब' क्यों किसी पे तोहमत है