हर फ़ित्ना-ओ-तफ़रीक़ से बेज़ार हैं हम लोग साइल हैं मोहब्बत के तलबगार हैं हम लोग हिन्दू न मुसलमान न ईसाई न सिख हैं इस मुल्क की तहज़ीब के मीनार हैं हम लोग ता'मीर-ए-गुलिस्ताँ में लहू सब का है शामिल है फ़ख़्र कि इस मुल्क के मे'मार हैं हम लोग तफ़रीक़-ओ-तअ'स्सुब के जो हामी हैं अभी तक अब उन के लिए बरसर-ए-पैकार हैं हम लोग जो बात कही जब भी सर-ए-दार कही है ग़द्दार नहीं साहिब-ए-किरदार हैं हम लोग तक़्सीम हमें करने की जुरअत भी न करना ऐ फ़ित्ना-गरो अज़्म की दीवार हैं हम लोग हम ने ही जिन्हें रस्म-ए-वफ़ादारी सिखाई अब वो हमें कहने लगे ग़द्दार हैं हम लोग मज़हब न किसी ज़ात न सरहद से है मतलब मज़लूम कोई भी हो मदद-गार हैं हम लोग यक-जेहती की ताक़त पे 'तरब' नाज़ है हम को वक़्त आने दो दिखलाएँगे तय्यार हैं हम लोग