हुस्न-ए-फ़ितरत से मोअ'त्तर था कभी दिल सहीफ़ों से मुनव्वर था कभी ये है मौसम की शरारत अब के वर्ना हर पेड़ समर-वर था कभी खा गई लहर कोई तूफ़ानी एक छोटा सा यहीं घर था कभी जो नज़र आता है गूँगा बंजर सौत-ओ-मा'नी का समुंदर था कभी किरची किरची है यक़ीं का शीशा जो मिरी ज़ीस्त का महवर था कभी तिश्नगी भर गई शो'ले 'साजिद' ज़ेहन सोया हुआ ख़ंजर था कभी