हुस्न है मग़रूर दिल सौदाई है इश्क़ और नफ़रत में हाथा-पाई है धड़कनों में कर दिया पैदा फ़साद हर अदा में तेरी इक बलवाई है हम ने ख़ुद देखी है दस्त-ए-ग़ैर में तेरी तो तस्वीर भी हरजाई है वज्द आँखों में है बासी नींद का वस्ल की जब से करम-फ़रमाई है तुम को देखे बिन गुज़रना छेड़ था दिल पे मत लो दाग़-ए-दिल दुख-दाई है दिल-लगी है इब्तिदा-ए-दिलबरी चाहतों में छेड़-छाड़ अच्छाई है कितनी शर्मीली है 'मन्नान' उस की याद दर्द के पर्दे में छप कर आई है