कढ़ाव रख के तख़य्युल पे आसमान तले यक़ीं के तेल में लोगों ने सब गुमान तले अक़ीदतों का अजब फ़ल्सफ़ा है क्या किया जाए कि इस में उँगलियाँ दब जाती हैं कमान तले ज़बान आग सही दिल हमारा जल-थल है तपिश पहुँचती नहीं लौ की शम्अ-दान तले फ़साद बाला-नशीनों की शह पे होता हैं वगर्ना रहते नहीं दाँत क्या ज़बान तले शुऊ'र मसनद-ए-औहाम पर है जल्वा-फ़गन कभी बिठाओ हक़ीक़त के साएबान तले