हुस्न हो पाएदार ना-मुम्किन मुस्तक़िल हो बहार ना-मुम्किन तजरबे की बिना पे कहता हूँ रंज-ओ-ग़म से फ़रार ना-मुम्किन ऐसे बे-इख़्तियार मौसम में दिल पे हो इख़्तियार ना-मुम्किन मेरी बर्बादियाँ बजा लेकिन कोई हो शर्मसार ना-मुम्किन मरहलों का शुमार मुमकिन है हौसलों का शुमार ना-मुम्किन कितने आएँ तग़य्युरात मगर नूर बन जाए नार ना-मुम्किन चश्म-ए-मयगूँ का फ़ैज़ है वर्ना बे-पिए हो ख़ुमार ना-मुम्किन अह्द वो आ गया 'ज़िया' जिस में फ़र्क़-ए-लैल-ओ-नहार ना-मुम्किन