हमें जब एहसास-ए-ज़िंदगी था तो दिल में इक ख़्वाहिश-ए-नुमू थी अजीब निखरा हुआ था आलम हसीन दुनिया-ए-रंग-ओ-बू थी कहीं पे थी रंग-ओ-बू की कसरत कहीं पे तक़्सीम-ए-रंग-ओ-बू थी तलाश थी मा-सिवा की मुझ को उन्हें ख़ुद अपनी ही जुस्तुजू थी नशात-अंगेज़ थीं हवाएँ सुरूर-अफ़रोज़ थीं फ़ज़ाएँ शुऊ'र था और याद तेरी नज़र थी और तेरी जुस्तुजू थी दयार-ए-नौ में अगर हमारा वक़ार क़ाएम नहीं तो क्या है कभी हमारा भी मर्तबा था कभी हमारी भी आबरू थी शफ़क़ के सैलाब में नहा कर कभी जो उभरे हसीन साग़र तो मय-कदे की नशात-परवर फ़ज़ा में आवाज़-ए-हाओ-हू थी हर इक नज़र में जमाल तेरा हर इक क़दम पे ख़याल तेरा कि आब-ओ-गिल के जहाँ में अब तक तलाश तेरी ही चार-सू थी तिरे तसव्वुर का लम्हा लम्हा 'ज़िया' की तस्कीन-ए-दिल का बाइ'स कि उस की दुनिया में कुछ नहीं था बस एक तेरी ही आरज़ू थी