हुस्न के डंके की धूम जग में पड़ी जा-ब-जा क्यूँ न बजे दिल मने इश्क़ की नौबत सदा आशिक़-ए-बे-जाँ ने आज दिल सती ऐ रूह-बख़्श तुझ कूँ कहा देख कर जान बया मर्हबा बुलबुल-ए-शीराज़ ने छोड़ दिया इश्क़-ए-गुल ग़ुंचा-दहन को सुना बात में जब ख़ुश-अदा सर्व हुआ है खड़ा तेरी तवाज़ो' कतीं जब सीं सुना बाग़ में क़द को तिरे दिल-रुबा तेरा दरस पाने को दौड़ कर आया चकोर बूझ तिरे चेहरे को ग़ैरत-ए-बदरुद्दुजा शौक़ का नाज़ुक दरख़्त ख़ुश्क हुआ दर्द सूँ हुस्न के बुस्ताँ में तू चुप से हुआ बेवफ़ा बाग़ में लाला कहे देख के नर्गिस तरफ़ चश्म का बीमार हो क्यूँकि खड़ा बे-असा लाफ़ न मार ऐ रक़ीब मज्लिस-ए-उश्शाक़ में दिल मने बेगाना है तुझ सती वो आश्ना फूल गया सूँघ मैं तेरे बदन की सो बास हो के तिरे पास जब मुझ कने आया सबा बस-कि तिरे आने की बाग़ मने थी ख़बर शौक़ से बे-इख़्तियार गुल ने कहा हल-अता मौज-ए-हवादिस सती मुझ कूँ नहीं ग़म कभी कश्ती-ए-हस्ती उपर बस-कि तू है नाख़ुदा तान तिरे मुँह से सुन वज्द करे तानसेन पकड़े अपस कान कूँ जब वो सुने कान्हरा याद सूँ तेरी जो दिल ख़ाली-ओ-ग़ाफ़िल है नित उस दिल-ए-बेहोश का नाम है बैत-उल-ख़ला कूचा-ए-सरबस्ता-ए-ज़ुल्फ़ में हैराँ होवे इश्क़-ए-सियह-चश्म का जिस का होवे रहनुमा आँख तिरी सहर को फंदे में दे हिरन कूँ ज़ुल्फ़ तिरी पेच सूँ दिल को देवे है फँसा मुजमर-ए-सीना मने क्यूँ न जले जिऊँ सिपंद दिल कूँ लगी चटपटी जब से हुआ तूँ जुदा इश्क़ के बीमार कूँ काम तबीबाँ सूँ नईं वस्ल की तबरीद बिन और नहीं है दवा हाल मिरे दर्द का पूछ कभी आन कर लुत्फ़ के क़ानून से मुझ कूँ मिलेगी शिफ़ा तेरी कमर देख कर दंग हैं बारीक-बीं क्यूँ न होवे मू-ब-मू तुझ पे फ़िदा 'मुबतला'