हुस्न के गुन गिन सकूँ ये गुन कहाँ रखता हूँ मैं लब नहीं खुलते मगर ज़ौक़-ए-बयाँ रखता हूँ मैं लौ जहाँ दी शम्अ ने मैं भी तड़प कर जल बुझा फ़ितरत-ए-परवाना-ए-आतिश-बजाँ रखता हूँ मैं फिर मिरे दामन में कोई फूल खिलता ही नहीं जब ज़रा क़ाबू में चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ रखता हूँ मैं बे-लुटाए कट नहीं सकती मताअ'-ए-इश्क़-ए-दोस्त दौलत-ए-बेगाना-ए-ख़ौफ़-ए-ज़माँ रखता हूँ मैं गुलशन-ए-जम्हूर हो या जन्नत-ए-मज़दूर हो कुछ अलग इन से ज़मीन-ओ-आसमाँ रखता हूँ मैं तोड़ देता है तिलिस्म-ए-हर-निज़ाम-ए-पुर-फ़रेब दिल में जो दर्द-ए-कसाँ-ओ-ना-कसाँ रखता हूँ मैं ख़िरमन-ए-बातिल उन्हीं से होगा 'आरिफ़' शो'ला-रू फ़िक्र की हर मौज में वो बिजलियाँ रखता हूँ मैं