नज़्म ग़ज़लों के सिवा कुछ भी नहीं By Ghazal << हुस्न के गुन गिन सकूँ ये ... आस दिल में तिरे आने की लग... >> नज़्म ग़ज़लों के सिवा कुछ भी नहीं इस से बढ़ कर और मज़ा कुछ भी नहीं ग़म छुपाने में महारत है मुझे तुम समझते हो हुआ कुछ भी नहीं मैं उसे ललकार आई हूँ मगर मेरे अंदर हौसला कुछ भी नहीं रात महफ़िल में 'सहर' का ज़िक्र था ख़्वाब इस से ख़ुशनुमा कुछ भी नहीं Share on: