हुस्न के इंकार से भी कुछ तो पर्दा रह गया मैं भी काफ़ी मुतमइन हूँ वो भी अच्छा रह गया दिल में उस के मोम-बत्ती सी जलाई भी मगर रौशनी के बावजूद इतना अंधेरा रह गया ख़ूबसूरत है तो इतना ही कमीना भी है वो एक भी दिल ने न मानी मैं तो कहता रह गया देखने आता भी है छोड़े हुए इस शहर को या'नी इस के बाद क्या उजड़ा है कितना रह गया मोड़ कर दरिया को दुश्मन ले गए अपनी तरफ़ और इधर रू-ए-ज़मीं पर दाग़-ए-दरिया रह गया और घर देखो कोई उस के तो चेहरे पर 'ज़फ़र' रंग-ए-दिल बाक़ी नहीं अब रंग-ए-दुनिया रह गया