किस को ख़बर थी वो भी मिरा यार होएगा और तुर्त साथ सोने को तय्यार होएगा कुछ होने और कुछ भी न होने के दरमियाँ इक़रार होएगा कभी इंकार होएगा खोला जो उस ने राज़ हमारा तो बेश-ओ-कम पोशीदा इस में भी कोई असरार होएगा गुमनाम जो भी रहता है इज़्ज़त उसी की है मशहूर होएगा तो बहुत ख़्वार होएगा जो कुछ समझ में आएगा रुक जाएगा वहीं जो फ़हम से वरा है वो इज़हार होएगा बाहर से जितनी होएगी ता'मीर सर-बुलंद अंदर उसी हिसाब से मिस्मार होएगा रहने का हक़ उसी को अता होगा शहर में अब शहर-यार का जो तरफ़-दार होएगा जो छुप-छुपा के होता रहा सब से आज तक अब होएगा तो बरसर-ए-बाज़ार होएगा अच्छा नहीं है बोसा-ए-चश्म उस का ऐ 'ज़फ़र' तू रफ़्ता-रफ़्ता आप ही बीमार होएगा