हुस्न ख़ुद में न हुआ जल्वा-नुमा मेरे बाद रास क्या आती ज़माने की हवा मेरे बाद म्यान से निकली न शमशीर-ए-जफ़ा मेरे बाद रक़्स-ए-बिस्मिल का तमाशा न हुआ मेरे बाद पास-ए-दस्तूर न साक़ी को रहा मेरे बाद दर-ए-मय-ख़ाना खुला छोड़ दिया मेरे बाद इक मिरे उठने से दिल बैठ गया रिंदों का जाम उठे और न शीशा ही झुका मेरे बाद हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल की तरफ़ ले के गया रास्ता भूल गए राह-नुमा मेरे बाद बार-ए-एहसान से दब जाए न तुर्बत 'आज़ाद' चादर-ए-गुल से न मरक़द को सजा मेरे बाद