हुस्न की इक चिंगारी ने क्या ख़ूब लगाई इश्क़ की आग रुख़ पर ज़ुल्फ़ का झोंका आया और लहराई इश्क़ की आग आँख से निकली इक दस्तक ने दिल दरवाज़ा खोल दिया प्यार का इक गुलदस्ता थामे मिलने आई इश्क़ की आग साथ में जीना साथ में मरना रिश्ता अपनी सदियों का हम-जोली हो अपनी जैसे या माँ-जाई इश्क़ की आग पैर में चक्कर हाथ में कासा दिल वालों की बस्ती में प्यार की दौलत लेने निकले हाथ में आई इश्क़ की आग हिज्र के तपते सहरा में इक याद के घूँट से दम आया बिल्कुल जान निकलने को थी जब पहुँचाई इश्क़ की आग उस ज़ालिम की नज़रों में कुछ जादू जैसी बात तो थी पहले प्यार का रूप सजाया फिर सुलगाई इश्क़ की आग हिज्र के हाथों दिल की ज़मीं पर नाग-फनी जब काश्त हुए हम ने याद की कलियाँ सूंघीं और महकाई इश्क़ की आग दुनिया भर की नहरें दरिया और समुंदर सूख गए सोहनी अपने कच्चे घड़े में जब भर लाई इश्क़ की आग यूँ तो 'सबा' हम हर मौसम में आग में ज़िंदा जलते हैं सावन की रुत ने लेकिन खुल कर बरसाई इश्क़ की आग