कम नहीं है रंज-ओ-ग़म में ये ख़ुशी मेरे लिए बादलों से झाँकती है चाँदनी मेरे लिए उस की आँखों में नमी है मुँह से कुछ कहता नहीं इक अज़िय्यत बन गई है ख़ामुशी मेरे लिए फिर ग़लत-फ़हमी की चिंगारी हवा देने लगी उस ने लिक्खा है ये ख़त है आख़िरी मेरे लिए रक़्स करती है मिरी परछाईं उस की याद में अब तो जीना हो गया है लाज़मी मेरे लिए अपने सारे ख़्वाब शे'रों में सजा देती हूँ मैं बाइ'स-ए-तस्कीन-ए-दिल है शाइरी मेरे लिए बर्फ़ के मौसम में भी घर से निकलना क़हर था जिस तरफ़ भी मैं गई इक आग थी मेरे लिए रात अँधेरी और मैं तन्हा मुसाफ़िर ऐ 'सबा' किस क़दर मुश्किल हुई है ज़िंदगी मेरे लिए