हुस्न को बे-नक़ाब होने दो इश्क़ को कामयाब होने दो ज़ीस्त ग़र्क़-ए-शराब होने दो हर हक़ीक़त को ख़्वाब होने दो तूर-ओ-मूसा से मावरा हैं हम राज़ का सद्द-ए-बाब होने दो देखना है अभी हयात को जश्न इक नया इंक़लाब होने दो मैं बला-नोश-ओ-बादा-ख़्वार सही मेरी हस्ती ख़राब होने दो आज की शब तो उन की महफ़िल में इश्क़ को बारयाब होने दो मुल्तफ़ित कोई हो रहा है 'नज़र' लुत्फ़ और बे-हिसाब होने दो