हुस्न को वुसअतें जो दीं इश्क़ को हौसला दिया जो न मिले न मिट सके वो मुझे मुद्दआ दिया हाथ में ले के जाम-ए-मय आज वो मुस्कुरा दिया अक़्ल को सर्द कर दिया रूह को जगमगा दिया दिल पे लिया है दाग़-ए-इश्क़ खो के बहार-ए-ज़िंदगी इक गुल-ए-तर के वास्ते मैं ने चमन लुटा दिया लज्ज़त-ए-दर्द-ए-ख़स्तगी दौलत-ए-दामन-तही तोड़ के सारे हौसले अब मुझे ये सिला दिया कुछ तो कहो ये क्या हुआ तुम भी थे साथ साथ क्या ग़म में ये क्यूँ सुरूर था दर्द ने क्यूँ मज़ा दिया अब न ये मेरी ज़ात है अब न ये काएनात है मैं ने नवा-ए-इश्क़ को साज़ से यूँ मिला दिया अक्स जमाल-ए-यार का आइना-ए-ख़ुदी में है ये ग़म-ए-हिज्र क्या दिया मुझ से मुझे छुपा दिया हश्र में आफ़्ताब-ए-हश्र और वो शोर-ए-अल-अमाँ 'असग़र'-ए-बुत-परस्त ने ज़ुल्फ़ का वास्ता दिया