दिल ज़ुल्फ़-ए-बुताँ में है गिरफ़्तार हमारा इस दाम से है छूटना दुश्वार हमारा बाज़ार-ए-जहाँ में हैं अजब जिंस-ए-ज़बूँ हम कोई नहीं ऐ वाए ख़रीदार हमारा थी दावर-ए-महशर से तवक़्क़ो सो तुझे देख वो भी न हुआ हाए तरफ़-दार हमारा क्यूँकर न दम-ए-सर्द भरें हम कि हर इक से मिलता है बहुत गर्म कुछ अब यार हमारा तुझ बिन उसे ये समझें कि है शोला-ए-दोज़ख़ गर हो गुल-ए-जन्नत गुल-ए-दस्तार हमारा 'रासिख़' ये पस-ए-मर्ग भी हमराह रहेगा है यार का ग़म यार-ए-वफ़ादार हमारा