हुस्न महरूम-ए-मोहब्बत ही रहा मेरे बाद मुझ सा दिल-दादा-ओ-शैदा न मिला मेरे बाद कौन अब ग़म की मुदारात करेगा यारो किस के सर जाएगा इल्ज़ाम-ए-वफ़ा मेरे ब'अद महफ़िल-ए-नाज़ में क्या क्या न हुईं तदबीरें दिल का शीराज़ा फ़राहम न हुआ मेरे बाद मुज़्दा-ए-फ़स्ल-ए-बहाराँ न सुना गुलचीं ने ख़ाक उड़ाती फिरी गुलशन में सबा मेरे बाद बुझ गए मेरे न होने से चराग़ों के नसीब नक़्श-ए-पा उन के हैं महरूम-ए-ज़िया मेरे बा'द ग़म-ज़दा अहल-ए-जुनूँ अहल-ए-वफ़ा कुछ तो कहो किस लिए दहर में कोहराम मचा मेरे बाद ख़ुश-नवाओं से रही महफ़िल-ए-दुनिया आबाद नग़्मा-ए-‘दर्द’ किसी ने न सुना मेरे बा'द