हुस्न पाबंद-ए-हिना हो जैसे ये वफ़ाओं का सिला हो जैसे यूँ वो करते हैं किनारा मुझ से इस में मेरा ही भला हो जैसे ता'ना देते हैं मुझे जीने का ज़िंदगी मेरी ख़ता हो जैसे इस तरह आँख से टपका है लहू शाख़ से फूल गिरा हो जैसे सर-ए-कोहसार वो बादल गरजा दिल धड़कने की सदा हो जैसे हाल-ए-दिल पूछते हो यूँ मुझ से तुम मिरे दिल से जुदा हो जैसे याद यूँ आई तिरी रुक रुक कर कोई ज़ंजीर-ब-पा हो जैसे अब जफ़ा को भी तरसते हैं 'रज़ा' यही तासीर-ए-दुआ हो जैसे